00 खुद नहीं पढ़े लेकिन चारों बेटियों को पढ़ाने का प्रण | बड़े बदलाव की छोटी कहानियां

पढ़ने-लिखने से हमेशा दूर रहे राधेश्याम जानते हैं कि जीवन में शिक्षा का क्या मोल है। इसलिए गरीबी की तमाम चुनौतियों को झेलने के बावजूद उनका संकल्प है कि वे अपनी चारों बेटियों में से किसी का ब्याह जल्दी नहीं करेंगे और सबको अच्छी शिक्षा दिलाकर ही उनके हाथ पीले करेंगे। जिला श्रावस्ती के ब्लॉक गिलौली में एक गांव है जिसका नाम है कोकलवारा। यह जिला बहुत अधिक बाल विवाह होने के कारण देश भर में बदनाम है।

गरीबी और लड़की को बोझ समझने की धारणाओं का मेल ऐसा बैठता है कि ज्यादातर ग्रामीण परिवारों को लड़कियों को ऊंची तालीम दिलाने का विचार बहुत बड़ी विलासिता लगता है। इसलिए आसार यही थे कि कोकलवारा के किसान राधेश्याम अपनी चारों बेटियों को पढ़ाने का धैर्य नहीं रखेंगे। लेकिन राधेश्याम ने सबको गलत साबित कर दिया।

उनकी चारों बे‌टियां स्कूल जाती हैं और सबसे बड़ी- विद्यावती- के अठारह बरस की होने के बावजूद निकट भविष्य में उसकी पढ़ाई बंद कर शादी कर देने का उनका कोई इरादा नहीं है। वह परमहंस मंगलदास स्कूल में साइंस की पढ़ाई कर रही है। उससे छोटी बे‌टी किरन भी उसी स्कूल में दसवीं में पढ़ रही है। सबसे छोटी दो बेटियां भी कोकलवारा के प्राथमिक स्कूल में पढ़ती है।

राधेश्याम की वार्षिक आमदनी हजारों में है। घर बड़ी मुश्किल से चलता है। लेकिन वे मानते हैं कि चाहे दो रोटी कम खानी पड़े, बच्चियों की एजुकेशन पर कोई समझौता नहीं। उनकी पढ़ाई जरूर पूरी होगी।

स्मार्ट बेटियां अभियान से जुड़ी इंटरनेट साथी नीतू यादव ने यह वीडियो कथा बनाकर अमर उजाला को भेजी है।

अमर उजाला फाउंडेशन, यूनिसेफ, फ्रेंड, फिया फाउंडेशन और जे.एम.सी. के साझा अभियान स्मार्ट बेटियां के तहत श्रावस्ती और बलरामपुर जिले में एक अभियान चला रहा है। इसके तहत 150 किशोरियों-लड़कियों को अपने मोबाइल फोन से बाल विवाह के खिलाफ काम करने वालों की ऐसी ही सच्ची कहानियां बनाने का संक्षिप्त प्रशिक्षण दिया गया है। इन स्मार्ट बेटियों की भेजी कहानियों को ही हम यहां आपके सामने पेश कर रहे हैं।

 

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