बृजरानी की पढ़ाई आठवीं के बाद रुकने वाली थी और उसका बाल विवाह भी हो ही जाता अगर उसकी दोस्त गुंजन त्रिपाठी और उसकी सहेलियों ने मिलकर बृजरानी की हर तरह से मदद न की होती। गुंजन ने अपने पिता से कहकर बृजरानी का नवीं में एडमिशन कराया और फिर सब सहेलियों ने मिलकर अपने जेबखर्च से पैसे बचा कर बृजरानी की फीस भरने का सिलसिला शुरू किया। गुंजन के पिता ने शुरुआती आर्थिक मदद तो की ही, साथ ही बृजरानी के परिवार वालों को इस बात के लिए भी राजी किया कि उसे पढ़ने दें और उसका बाल विवाह न करें। किशोरी सशक्तीकरण के लिए सबके सहयोग की एक मिसाल है यह कहानी।
इस कहानी की मुख्य किरदार है बलरामपुर के दरदहवा गांव की गुंजन। वह आज स्मार्ट बेटियां अभियान से जुड़ी है और इंटरनेट साथी के रूप में उसी ने इस वीडियो कथा को बनाकर भेजा है। लेकिन बरसों पहले जब उसने आठवीं की ही थी, तभी उसने जिद करके बृजरानी की मदद के लिए पिता समेत अपनी सहेलियों को जुटाया था और बाद में भी लगातार बृजरानी की मदद के लिए सजग रही।
सही वक्त पर बृजरानी की शादी हुई और उसके पति ने भी आगे पढ़ाई जारी रखने में उसे हर तरह से प्रोत्साहित किया। स्नातक करके बृजरानी आज एक स्कूल में पढ़ा रही है और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी भी कर रही है।
अमर उजाला फाउंडेशन, यूनिसेफ, फ्रेंड, फिया फाउंडेशन और जे.एम.सी. के साझा अभियान स्मार्ट बेटियां के तहत श्रावस्ती और बलरामपुर जिले की 150 किशोरियों-लड़कियों को अपने मोबाइल फोन से बाल विवाह के खिलाफ काम करने वालों की ऐसी ही सच्ची और प्रेरक कहानियां बनाने का संक्षिप्त प्रशिक्षण दिया गया है। इन स्मार्ट बेटियों की भेजी कहानियों को ही हम यहां आपके सामने पेश कर रहे हैं।