दामू पुरवा गांव की आशा बहू रामरानी के चेहरे पर पश्चाताप साफ नजर आता है। वह बताती हैं कि आज वह दुनिया को बाल विवाह के खतरों के बारे में समझाती हैं। लेकिन एक वक्त ऐसा था जब वह खुद अपनी बड़ी बेटी के बाल विवाह को रोक नहीं पाईं। श्रावस्ती जिले के जमुनहा ब्लॉक के इस गांव में बाल विवाह एक आम बात है। वैसे पूरा श्रावस्ती जिला ही बाल विवाह की सबसे ऊंची दर के लिए देश भर में कुख्यात है।
रामरानी बताती हैं कि उनके पति ने जब बड़ी बेटी को सोलह साल की उम्र में ब्याहा तो उनमें इतनी समझ और हिम्मत नहीं थी कि वे इसे रोकें। उसका अंजाम यह हुआ कि उन्होंने बाद में अपनी बेटी को गृहस्थी की चक्की में फंसते और बरबाद होते देखा। उसकी सेहत, आत्म सम्मान, शिक्षा, आय - सब पर बाल विवाह के कुप्रभाव हुए। लेकिन मां होने के बावजूद वह बस चुपचाप देखने के सिवा कुछ नहीं कर पाई।
इसलिए अब रामरानी कृतसंकल्प हैं। वह अपनी छोटी बेटी की तालीम हर हाल में पूरा करेंगी। इस बीच रामरानी ने सोशल हेल्थ वर्कर की ट्रेनिंग भी ले ली है और आशा बहू बन गईं हैं। घर-घर जाकर जच्चा-बच्चा की सेहत के गुर समझाती हैं।
एक मां के पश्चाताप की यह कहानी बिलकुल सच्ची है और इसे अमर उजाला और यूनीसेफ के ` स्मार्ट बेटियां` अभियान के तहत इंटरनेट साथी पिंकी देवी ने वीडियो कथा के रूप में ढाल कर भेजा है।
अमर उजाला फाउंडेशन, यूनिसेफ, फ्रेंड, फिया फाउंडेशन और जे.एम.सी. के साझा अभियान `स्मार्ट बेटियां` के तहत श्रावस्ती और बलरामपुर जिले की 150 किशोरियों-लड़कियों को अपने मोबाइल फोन से बाल विवाह के खिलाफ काम करने वालों की ऐसी ही सच्ची और प्रेरक कहानियां बनाने का संक्षिप्त प्रशिक्षण दिया गया है। इन स्मार्ट बेटियों की भेजी कहानियों को ही हम यहां आपके सामने पेश कर रहे हैं।