जिंदगी में सुर कभी शिकायत नहीं करते। प्रार्थना करते हैं। सुर के बिना बेसुरी हो जाती है जिंदगी। लेकिन, जिंदगी में सुर को जब रोशनी की जरूरत होती है, तो उसे शब्दों का साथ चाहिए होता है। इसलिए, सदियों से संगीत और साहित्य के बीच एक रिश्ता बना हुआ है। आज हम सब उसी रिश्ते को इस माहौल में महसूस कर पा रहे हैं। अमर उजाला शब्द सम्मान के पांचवें संस्करण में बुधवार को दिल्ली में मुख्य अतिथि के रूप में प्रख्यात बांसुरी वादक, संगीतकार और संगीत निर्देशक पंडित हरिप्रसाद चौरसिया ने ये बातें कहीं।
पंडित हरिप्रसाद ने कहा, हम सब सुर व लय से बंधे हैं। इस बंधन को साहित्य संस्कार देता है। यह संस्कार मैंने बांसुरी से और किताबों से पाया है। बांसुरी ऐसा यंत्र है, जो विचलित मन को भी शांत कर देता है। कहीं न कहीं यह बात भी सच है कि बांसुरी की धुन आजकल के गीतों में कम हो गई है, लेकिन आज भी पुराने गीतों में बांसुरी की धुन सुनता हूं, तो खुद को उससे जुड़ा हुआ पाता हूं।
पंडितजी ने अपने शिष्य और विख्यात बांसुरी वादक राकेश चौरसिया के साथ बांसुरी वादन से समारोह में समां बांध दिया। पंडितजी ने दो शीर्षस्थ साहित्यकारों को आकाशदीप व पांच साहित्यकारों को श्रेष्ठ कृति सम्मान प्रदान किया।
समारोह में हिंदी के प्रख्यात कवि और कथाकार विनोद कुमार शुक्ल और मलयालम के विख्यात साहित्यकार और फिल्मकार एम. टी. वासुदेवन नायर को सर्वोच्च आकाशदीप अलंकरण से सम्मानित किया गया। श्रेष्ठ कृति के लिए कुमार अम्बुज को (छाप-कविता), मनोज रूपड़ा (छाप-कथा), दलपत सिंह राजपुरोहित (छाप-कथेतर), चिन्मयी त्रिपाठी को श्रेष्ठ पहली कृति के लिए थाप-सम्मान और मालिनी गौतम को भाषाबंधु से सम्मानित किया गया। इस संगीतमयी शाम में केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने पंडित हरिप्रसाद चौरसिया और राकेश चौरसिया का पुष्पगुच्छ देकर स्वागत किया।
उत्साह बढ़ाता है सहयोग : राजुल माहेश्वरी
अमर उजाला समूह के चेयरमैन राजुल माहेश्वरी ने कहा कि शब्द साधकों को सम्मानित करने का यह आयोजन पांच साल पहले शुरू किया गया था। इसमें सभी की भागीदारी और मौजूदगी इस आयोजन की गरिमा बढ़ाती है। यह हमारा उत्साहवर्धन भी करता है। उन्होंने आयोजन को इतनी आत्मीयता देने के लिए सभी का आभार जताया। माहेश्वरी ने पंडित हरिप्रसाद चौरसिया और राकेश चौरसिया का आभार प्रकट करते हुए उन्हे शॉल और स्मृति चिह्न भेंट कर सम्मानित किया।
कला-साहित्य को संग लाए : यशवंत व्यास
अमर उजाला के समूह सलाहकार यशवंत व्यास ने बताया कि शब्द सम्मान की शुरुआत भारतीय भाषाओं हिंदी, उड़िया, मलयालम, बांग्ला, मराठी समेत अन्य भाषाओं को जोड़ने के लिए की गई। साहित्य को कलाओं के साथ जोड़ने की शुरुआत में पिछले साल सरोद वादक उस्ताद अमजद अली खान ने प्रस्तुति दी और इस बार दो ग्रैमी अवॉर्ड जीतने के बाद राकेश चौरसिया ने पहली प्रस्तुति खुद अपने गुरु पंडित हरिप्रसाद चौरसिया के साथ दी।
इस उम्र में छोटा और कम लिखता हूं...
अभी मेरी सोच बच्चों के लिए लिखने की ज्यादा रहती है, क्योंकि इस उम्र में छोटा और कम लिखता हूं। मेरे लिए ज्यादा देर तक किसी एक चीज पर कायम रहना कठिन है...लेखन में भी। जब मैं बड़ों के लिए लिखता हूं, तब बिल्कुल नहीं सोचता कि कितने बड़ों के लिए लिख रहा हूं।
-विनोद कुमार शुक्ल, हिंदी के प्रख्यात साहित्यकार और रचनाकार
बड़े होने पर भी साथ रहती हैं कहानियां
बचपन में हम जो कहानियां सुनते हैं, वह बड़े होने के बाद भी आपके साथ रहती हैं। इसका असर मेरे लेखन पर भी पड़ा। जब मुझे कहानी का विचार आता है, तो अधिकतर समय में मैं इसे अपने मन में लिख लेता हूं। ऐसा करने के बाद ही उसे लिखने बैठता हूं।
-एमटी वासुदेवन नायर, मलयालम के प्रख्यात साहित्यकार और फिल्मकार
बांसुरी से बात करता हूं, आज शब्दों में बोलकर अच्छा लगा ...पंडित हरिप्रसाद चौरसिया
समारोह के दौरान पंडित हरिप्रसाद चौरसिया और उनके शिष्य राकेश चौरसिया की बांसुरी ने शब्द साधकों के साथ उपस्थित श्रोताओं का मन मोह लिया। जुगलबंदी के दौरान बांसुरी के मीठे सुरों की फुहार सीधे श्रोताओं के दिलों तक पहुंच रही थी। दोनों अंतर्मन से निकल रहे शब्दों को बांसुरी से सुरों में बदलते रहे। बनारस घराने के तबला वादक पंडित छन्नूलाल मिश्र के बेटे राम कुमार मिश्र की अंगुलियां तबले पर नृत्य कर संगत कर रही थीं। तीनों कलाकारों की जुगलबंदी जब शुरू हुई, तो सुर की लहरियों के साथ अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर का ऑडिटोरियम तालियों की गड़्गड़्ाहट से गूंजता रहा।
पंडित हरिप्रसाद चौरसिया और राकेश चौरसिया ने राग यमन से शब्द साधकों का स्वागत किया। यह शाम का राग है, जो प्रेम की प्रकृति का है। इसमें तीव्र मध्यम राग का प्रयोग किया जाता है। दोनों कलाकारों ने अधरों पर बांसुरी रखकर पहले तो मंद-मंद तान छेड़नी शुरू की। सुरों को जब तबले का साथ मिला, तो दोनों मानों एक-दूसरे का हाथ थामे साथ-साथ चल रहे हों। श्रोता शांत चित्त से बांसुरी को सुनते रहे...बीच में जब बांसुरी की तान उठती, तो लोगों का मन बरबस ही प्रफुल्लित हो उठता। करीब आधे घंटे तक यह जुगलबंदी श्रोताओं को सराबोर करती रही। पंडित हरिप्रसाद चौरसिया और राकेश चौरसिया ने आखिर में आज खेलो श्याम होली...गीत पर बांसुरी बजाई।
शब्दों के साधकों को सम्मानित करने के बाद पंडित हरिप्रसाद चौरसिया ने कहा, यह पहला अवसर है, जब मैं पुरस्कार ले नहीं रहा हूं, बल्कि सबको दे रहा हूं। अमर उजाला इस तरह के आयोजन में साहित्य के साथ कला को भी जोड़ ले। यह बहुत बड़ी बात है कि साहित्य को ऐसा अवसर दिया गया। ईश्वर करे कि अमर उजाला यह परंपरा बनाए रखे। उम्मीद है कि पांच साल की यह परंपरा 50 साल तक कायम रहेगी। दिल्ली में हमेशा बांसुरी से बात करता हूं। आज इच्छा हुई शब्दों में बोलने की, तो अच्छा लगा।