सुविख्यात बांग्ला कवि, आलोचक, शिक्षाविद् और पद्मभूषण शंख घोष का बुधवार, 21 अप्रैल, 2021 को देहावसान हो गया। 89 वर्ष के घोष कुछ समय से अस्वस्थ थे। 14 अप्रैल को वह जीवनघाती कोविड-19 से संक्रमित हो गए थे और उनकी सेहत लगातार गिर रही थी।
अमर उजाला फाउंडेशन के शब्द सम्मान के तहत सर्वोच्च पुरस्कार 'आकाशदीप' से सम्मानित शंख घोष चिकित्सकों की सलाह पर घर में आइसोलेशन में थे। इस बीच मंगलवार, 20 अप्रैल देर रात ऑक्सीजन स्तर काफी गिर गया। उन्हें ऑक्सीजन दी गई, लेकिन बुधवार सुबह साढ़े आठ बजे उनका देहांत हो गया।
घोष को रवींद्रनाथ टैगोर पर गहरी समझ के लिए पहचाना जाता है। उनकी कृति 'आदिलता गुलमोमय' और 'मूर्ख बारो समझिक नाय' ने उन्हें पाठकों में विशिष्ट पहचान दिलाई। 'बाबरेर प्रार्थना' के लिए 1977 में उन्हें साहित्य अकादमी अवॉर्ड मिला था। 2011 में पद्मभूषण और 2016 में ज्ञानपीठ पुरस्कार भी दिया गया।
1932 में चांदपुर (मौजूदा बांग्लादेश) के मनिंद्रकुमार घोष के घर जन्मे चित्तोप्रियो घोष ने अपना नाम शंख घोष रखा। उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज से बांग्ला में स्नातक और कलकत्ता विश्वविद्यालय से एमए किया। फिर जादवपुर विश्वविद्यालय से जुड़े और 1992 में वहीं से सेवानिवृत्त हुए। पांच दशक की साहित्य सेवा की वजह से उन्हें शक्ति चट्टोपाध्याय, सुनील गंगोपाध्याय, बिनॉय मजूमदार और उत्पल कुमार के साथ 'आधुनिक बांग्ला साहित्य के पांडवों' में गिना जाता था। शंख घोष के साथ हिंदी के लिए आकाशदीप से सम्मानित लेखक-आलोचक विश्वनाथ त्रिपाठी ने कहा कि भारतीय भाषाओं का अनूठा शब्द चला गया।
शब्द सम्मान समारोह निरस्त
अमर उजाला फाउंडेशन ने शंख घोष की स्मृति में इस साल का शब्द सम्मान समारोह निरस्त कर दिया है। सभी पुरस्कृत रचनाकारों तक अलंकरण, प्रतीक चिन्ह और सम्मान राशि उनके आवास पर ही समर्पित किए जाएंगे। शंख घोष को हिंदी-इतर भारतीय भाषाओं में अप्रतिम योगदान के लिए आकाशदीप के लिए चुना गया था।
हमेशा याद आएंगे शंख घोष: मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शंख घोष के निधन पर दुख जताया। उन्होंने कहा, 'बांग्ला और भारतीय साहित्य में योगदान के लिए शंख घोष को हमेशा याद किया जाएगा। उनकी कृतियों को खूब पढ़ा जाता था और उनकी सराहना भी की जाती थी। उनके निधन से दुखी हूं। उनके परिजनों और मित्रों के प्रति मेरी संवेदनाएं।'