00 मुंबई में गुलज़ार ने किया शब्द साधकों का सम्मान
मुंबई के नरीमन पॉइंट स्थित वाईबी चव्हाण सेंटर में आयोजित अमर उजाला शब्द सम्मान- 2019 समारोह में फिल्मकार और कवि गुलज़ार और अन्य सम्मानित सदस्य
  Start Date: 28 Dec 2019
  End Date: 28 Dec 2019
  Location: मुंबई

अमर उजाला शब्द सम्मान के दूसरे संस्करण में शनिवार, 28 दिसम्बर, 2019 को मुंबई में फिल्मकार और कवि गुलजार ने देश के हालात पर और आम आदमी के दर्द पर व्यंग्नात्मक टिप्पणी करते हुए जोर देकर कहा कि आज के दौर में साहित्यकार ही सीधे-साफ तरीके से सच्ची बात कह पा रही है। समारोह में हिंदी के प्रख्यात कथाकार और संपादक ज्ञानरंजन और मराठी के विख्यात कवि और उपन्यासकार भालचंद्र नेमाडे को सर्वोच्च आकाशदीप अलंकरण से सम्मानित किया गया। इसके तहत उन्हें पांच-पांच लाख की नकद राशि और प्रतीक चिन्ह अर्पित किए गए।

अमर उजाला शब्द सम्मान- 2019 के तहत इसी मौके पर पांच अन्य हिंदी साहित्यकारों, ज्ञान चतुर्वेदी, गगन गिल, सुनीता बुद्धिराजा, अंबर पांडेय और उत्पल बैनर्जी को भी गुलजार ने प्रतीक चिह्न के साथ एक-एक लाख रुपये की राशि अर्पित की गई।

गुलजार ने मुंबई आकर आयोजन करने के लिए अमर उजाला को बधाई दी। अमर उजाला की इस विशेष पहल पर भालचंद्र नेमाडे ने भी पत्रसमूह को विशेष आभार प्रकट किया।

हम रेत में चल रहे हैं, कहीं पहुंच नहीं रहे : ज्ञानरंजन
आकाशदीप से सम्मानित ज्ञानरंजन ने कहा कि हमारे देश का वर्तमान हिंसक है। हम समय के माहिर और समय के उस्तादों से घिर गए हैं। हम रेत में चल रहे हैं, हमारे पैर चल रहे हैं, हम कहीं पहुंच नहीं रहे।

मेरा पाठक वो जो वंचित है, मगर जिंदगी से प्यार करता है : नेमाडे
आकाशदीप से ही सम्मानित भालचंद्र नेमाडे ने अपने जीवन दर्शन को दोहराते हुए कहा कि मेरे सामने वो पाठक होता है, जो ग्रामीण है, जरूरी सुविधाओं से वंचित है, मेहनतकश है, असहाय है मगर जिंदगी से प्यार करता है, जिसका दिल धड़कता है। उन्होंने हिंदी के बारे में कहा कि मेरी बंबइया हिंदी है, जो हम सबकी बोली है, वही सच्चे अर्थ में राष्ट्रभाषा है।

प्रख्यात फिल्मकार और गीतकार गुलजार ने अमर उजाला शब्द सम्मान समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि सीधा बोलना, साफ बोलना-कहना ज्ञानरंजन की विशेषता है। कार्यक्रम में दिए गए ज्ञानरंजन के वक्तव्य की याद दिलाते हुए गुलजार ने कहा कि किसी को बुरा लगे तो लगे, लेकिन सच नहीं बदला जा सकता... उसे कैसे नरम किया जाए। सच को खस्ता तो नहीं बनाया जा सकता। ज्ञानरंजन जी की यही बड़ी खूबी है, जो हम उनसे सीखते हैं और उनको सलाम करते हैं। 

अपने खास लहजे में उन्होंने ज्ञानरंजन से शिकायत भी की कि उन्होंने कहानी लिखना क्यों छोड़ दिया... तब जबकि वक्त की कहानी तो चल रही है, हिंदुस्तान की कहानी चल रही है अभी और पक रही है। मुंबई आकर आयोजन करने पर गुलजार ने अमर उजाला को बधाई दी। अमर उजाला की इस विशेष पहल के लिए भालचंद्र नेमाडे ने भी पत्रसमूह का विशेष आभार किया।

आधुनिक भाषा असफल हुई : ज्ञानरंजन
अपने रचनाकर्म और संपादककर्म को रेखांकित करते हुए ज्ञानरंजन ने कहा कि संपादकीय दुनिया गहरी जिद के साथ की तो अपने लेखन को ईंधन की तरह उसमें झोंक दिया। इसके बिना पहल (पत्रिका) की दुनिया बनाई नहीं जा सकती थी, जिसमें आज देश-देशांतर के अनमोल रचनाकार यात्रा कर रहे हैं। आज के समय पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि हम दलदल में गगनचुंबी इमारतें बना रहे हैं। 

ज्ञानरंजन ने कहा, पहले आततायी बर्बर बाहर से आते थे, अब वे घर से निकल रहे हैं। घर-बाहर का अंतर समाप्त है। इसको रचने के लिए आधुनिक भाषा असफल हो गई है, क्लासकीय और जनपदीय वाक्य कारगर गद्य नहीं बना पा रहे। कुछ भी बताना आसान नहीं है। इस जगमगाती शाम के बाद मुझे इसी देश-दुनिया में वापस लौटना है, जहां रात बहुत लंबी है और मुझे काम स्थगित नहीं करना है।

सत्ता के लहजे और चलन पर गुलजार ने अपने ही खास अंदाज में अनेक चुटीली टिप्पणियां कीं। इसमें जहां एक ओर आज के निजाम पर चोट थी, वहीं सत्ता के स्थायी चरित्र पर भी कटाक्ष थे। वक्तव्य का पहला शब्द उन्होंने बोला—‘दोस्तों।’ और फिर कहा, ‘मैं मित्रों कहते कहते रुक गया।’ इसके बाद कहा ‘दिल्ली से हर आने वाले से डर लगता है। पता नहीं क्या करे...क्या कानून लेकर चले आए।’उन्होंने कहा, आज यहां उन लोगों के बीच हूं जिनके पास इजहार है, जिन्हें जिंदगी छूती है और जो जिंदगी की इस छुअन को बयां भी कर लेते हैं। उनके पास बैठकर सीखने का मौका भी मिलता है।

ज्ञानरंजन जी से पहली मुलाकात उनकी पहली पहल (पत्रिका) के समय की है। उस मैगजीन से उन्होंने मेरा तआर्रुफ कराया था, कुछ वक्त तक साथ-साथ चलता रहा, सीखता रहा। पता नहीं उन्होंने कहानी लिखना क्यों छोड़ दिया...बड़े कमाल की कहानी लिखते थे।

पूरे मिडिल क्लास को एक गर्मी की शाम के बहाने कौन बयां कर सकता है...उसमें समाज का वो हिस्सा नजर आने लगता है जो उस गर्मी में जीते हैं। और वो गर्मी केवल मौसम की गर्मी नहीं... पूरे समाज की जद्दोजहद की है। उन्हीं ज्ञानरंजन को आपने सुना। सीधा बोलना, साफ बोलना-कहना उनकी विशेषता है। किसी को बुरा लगे तो लगे, लेकिन सच नहीं बदला जा सकता...उसे कैसे नरम किया जाए। सच को खस्ता तो नहीं बनाया जा सकता। ज्ञानरंजन जी की यही बड़ी खूबी है जो हम उनसे सीखते हैं और आपके उस इजहार को हम सलाम करते हैं।

अपने खास लहजे में उन्होंने ज्ञानरंजन से शिकायत भी की, ‘उन्होंने कहानी लिखना क्यों छोड़ दिया...तब जबकि वक्त की कहानी तो चल रही है, हिन्दुस्तान की कहानी चल रही है अभी। और अभी पक रही है... हर लम्हा छू रही है...हर शख्स को हर कौम को। हर आम आदमी को।

नेवाडे जी की कविताओं और उनसे जो मेरी मुलाकात हुई, काफी जद्दोजहद के बाद। तो उन्हें आज लाइफटाइम अचीवमैंट अवार्ड मिला और मैं जो उनसे मिल पाया वह मेरा अचीवमैंट रहा, लाइफटाइम का, अवार्ड (मुझे) मिला न मिला...। उनकी कविताएं लेकर आया...उनमें रवायत है। और जितना भी कहिए, आज भी, इन हालात में भी अगर कोई आवाज शुद्ध है, साफ बोलती है और सच कहती है, तो वो सिर्फ लेखक की जुबान है। उसकी आवाज एक परचम की तरह खड़ी है।’

घोड़े खरीदो...घोड़ों का व्यापार करो
एक आम आदमी है मुरारीलाल, जो अक्सर अपने किस्से मुझे सुनाया करता है। मैं उससे आपको भी मिलवाना चाहता हूं। जो हो रहा है, उस हालात से हम गुजरे हैं, महाराष्ट्र में रहते हुए। दिक्कत यह है कि मुरारीलाल के माथे से बल नहीं जाते। वो हर बात पर चिंता में रहता है। तो मुरारीलाल कहता है कि-

हाथी मरे तो मरने दो प्यादों की मत फिक्र करो
फीला (शतरंज के खेल का ऊंट) हटा लो
घोड़े खरीदो घोड़े, घोड़ों का व्यापार करो
ढाई घर चलते हैं ये, दायें हों या बायें
वजीर बचा लो...
कैसी ये शतरंज चली है महाराष्ट्र में
मुरारीलाल के माथे से बल नहीं जाते।

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