00 Uttarakhand rehabilitation
उत्तराखंड के आश्रयों में पलने लगी खुशियां।
 

उत्तराखंड के आपदा प्रभावित उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग और चमोली जिलों के जिन इलाकों में बीते वर्ष से आपदा की वीरानी छायी थी, उनमें से कुछ गाँवों में अब जीवन फिर से खिलने लगा है। सैलाब के साथ बह गईं खुशियाँ उसी रास्ते घर लौटने की तैयारी कर रही हैं। अमर उजाला फाउंडेशन द्वारा देहरादून की हिमालयन इन्वायरमेंटल स्टडीज एंड कंजर्वेशन ऑर्गेनाइजेशन (हेस्को) तथा सहयोगी संस्‍थाओं के साथ आपदा प्रभावितों के लिए शुरू किया गया पुर्नवास अभियान रंग लाने लगा है। पहले दो चरण में 55 लोगों को छत मुहैया करा दी गयी है।

इसके बाद 130 और परिवारों को अस्‍थायी आवास मुहैया कराने का कार्य भी अपने आख़िरी चरण में पहुंच गया है। पहाड़ों से आये सैलाब ने लोगों का सबकुछ छीन लिया था। पीड़ितों को समझ में नहीं आ रहा था कि जिन्दगी की नई शुरुआत कहां से करें। ऐसे में उनकी उम्मीदों और भरोसे को अमर उजाला फाउंडेशन ने सहारा दिया। आश्रय अस्‍थायी आवास योजना के पहले चरण में पाँच मॉडल आवास बनाये गये। दूसरे चरण में उत्तरकाशी के तीन गाँवों में 10, रुद्रप्रयाग के इतने ही गाँवों में 30 और चमोली जिले के दो गाँवों में 10 अस्‍थायी आवासों का निर्माण कार्य पूरा किया गया। इसके तुरंत बाद अंतिम चरण में तीनों ज़िलों में 130 आश्रयों का निर्माण भी शुरू किया गया, जो अप्रैल माह के अंत तक पूरा कर लिया जाएगा। इस तरह कुल 21 गाँवों में 185 अस्‍थायी आवास अमर उजाला फाउंडेशन, हेस्को और जाड़ी (उत्तरकाशी), ग्रास (रुद्रप्रयाग), स्वराज (रुद्रप्रयाग), हरियाली (कुलसारी, चमोली), एनसीपीडीपी और टार्न के सहयोग से बनाये जा रहे हैं। पसंद आ रही डिजाइन अस्‍थायी आवास की डिजाइन इसमें रहने वालों को बहुत भा रही है।

नई छत मिलने के बाद इसकी दीवारों पर वह अपनी पसंद के रंग भर रहे हैं। वैसे तो इस आश्रय को नाम अस्‍थायी दिया गया है पर कई लाभान्वितों को इसकी डिजाइन इतनी पसंद आयी कि उन्होंने घर की बुनियाद गहरी डलवा दी। अपने नये घर में पोतों के साथ खेलतीं सिरोर की पहली लाभार्थी कला देवी कहती हैं, 'यह घर केवल नाम के लिए अस्‍थायी है।' जमकर मना जश्न तिलवाड़ा के जैली गाँव में जश्‍न जैसा माहौल है। दरअसल यहाँ 21 आवास बनाये जा चुके हैं और 19 आवासों का निर्माण चल रहा है। गाँव में बने पहले मॉडल घर की लाभार्थी दीपा देवी ने मार्च में अपने 'नये घर' से ही बेटी को विदा किया। बेटी की शादी अच्छी तरह से हो जाने का सुकून उनके चेहरे पर साफ दिख रहा था। दीपा ने बताया, 'तीन साल पहले एक दिन वो (पति) लापता हो गये। काफी खोजबीन की लेकिन कुछ पता नहीं चला। हिम्मत जुटायी और गुजऱ बसर करने की ठानी। सब ठीक-ठाक चल रहा था कि आपदा ने सबकुछ लील लिया। एक पल को जीने की उम्मीद भी खत्म हो गयी थी, लेकिन अमर उजाला फाउंडेशन के आश्रय ने ‌फिर से हंसने की हिम्मत दी।

अब जिंदगी वापस पटरी पर लौट रही है'। लोगों का मिला साथ अमर उजाला फाउंडेशन और सहयोगी संस्‍थाओं ने जब इन तबाह हुए इलाकों को फिर से बसाने का प्रयास शुरू किया तो लोगों का भरपूर सहयोग मिला। कड़ाके की ठंड और बरसात भी लोगों का उत्साह कम नहीं कर पायी। नतीजा यह रहा कि पहले दो चरणों के आवास तय समय से पहले ही तैयार हो गये। गांव में रहने वाले दामोदर प्रसाद कहते हैं, 'उम्मीद तो सरकार से थी, लेकिन मदद आपने की। ऐसे में हमारी भी तो कुछ जिम्मेदारी बनती है।' यह संस्‍थाएं कर रहीं काम हेस्को (देहरादून), जाड़ी (उत्तरकाशी), ग्रास (रुद्रप्रयाग), स्वराज (रुद्रप्रयाग), हरियाली (कुलसारी, चमोली), एनसीपीडीपी और टार्न इन जगहों पर बन रहे आश्रय उत्तरकाशी, तिलवाड़ा, गुप्तकाशी (रुद्रप्रयाग), थराली (चमोली)

Share:

Related Articles:

0