आपदा क्या होती है, यह जेठी देवी को देखकर समझ में आता है। गुप्तकाशी के खुमैरा गांव में रहने वाली जेठी देवी के 18 रिश्तेदार 16-17 जून, 2015 की रात के बाद से वापस नहीं लौटे। कुछ कालीमठ में तो कई केदारनाथ में थे। जो गए, वो जेठी देवी के सौतेले रिश्तेदार थे। उनका अपना कोई नहीं है लेकिन खोया तो अपनों को ही था। आपदा ने 90 बरस की जेठी देवी पर भी कहर बरपाया। पैतृक घर तबाह हो गया।
जब कोई ठौर-ठिकाना नहीं बचा तो गांव के ही एक रिश्तेदार ने आसरा दिया लेकिन जेठी देवी का दिल आसरे के लिए तैयार नहीं था। वह अपने घर में रहना चाहती थीं। ऐसे में अमर उजाला फाउंडेशन के आश्रय ने जेठी की उम्मीदों को वापस लौटाने में मदद की। गुप्तकाशी का पहला मॉडल आवास जेठी को दिया गया। उम्र के इस पड़ाव में भी उन्होंने घर के निर्माण में श्रम दान किया, वजनी पत्थर उठाए और पानी लेकर आईं। जेठी देवी बताती हैं, ′वृद्धा पेंशन से बस दो जून की रोटी का इंतजाम ही हो पाता है।
आपदा के बाद लगा था कि सरकार मदद करेगी लेकिन यहां तो कोई झांकने तक नहीं आया। टी.वी. पर पुनर्वास कामों का विज्ञापन ज़रूर देखा लेकिन अब भी वह सिर्फ टी.वी. पर ही दिखता है।′ वह कहती हैं कि गांव वालों से अमर उजाला के बारे में सुना था पर कभी किसी ने यह नहीं बताया कि अखबार घर भी देता है।