अमर उजाला और टाटा ट्रस्ट की साझा मुहिम : मिलकर लड़ेंगे हम, जीतेंगे कुपोषण के खिलाफ जंग
पोषणम् पोषणम् पोषणम्... देश उम्मीद से है, करो पोषणम्... गीतकार प्रसून जोशी ने अमर उजाला के वेबिनार में कुपोषण को लेकर तैयार अपने गीत को गाया तो कुपोषण की जंग से लड़ने का हौसला और बढ़ गया। देश में आजादी के बाद कुपोषण आज भी बड़ी समस्या है। उन्होंने कहा हम सब मिलकर कुपोषण के खिलाफ जंग लड़ेंगे तो जीत हासिल कर लेंगे। इस समस्या की हकीकत जानने और इससे निपटने के लिए बृहस्पतिवार को अमर उजाला फाउंडेशन और द इंडिया न्यूट्रीशन इनीशिएटिव ने देश के जाने माने पोषण विशेषज्ञों के साथ वेबिनार के माध्यम से सामूहिक चर्चा की।
कुपोषण राजनीतिक मुद्दा कभी नहीं रहा
कुपोषण राजनीतिक में कभी बड़ा मुद्दा नहीं रहा। अगर हमें अपनी बुनियाद को मजबूत करना है तो नवजात को पोषित करना होगा। राज्य सरकारें अगर जिला स्तर पर सख्त दिशा निर्देश दें और देखरेख करें तो बेहतर सुधार भी दिखेंगे। कई जिलों में इस तरह के सकारात्मक प्रयोग देखने को मिले हैं। हम अपनी इच्छाशक्ति और संकल्पशक्ति से कुपोषण से निपट सकते हैं। बच्चे स्वस्थ होंगे तो देश का भविष्य उज्जवल होगा। - सचिन पायलट, पूर्व केंद्रीय मंत्री
संपन्नता पोषण की गारंटी नहीं होती
कुपोषण के सुधार में और बेहतर किया जाना है। संपन्नता पोषण की गारंटी नहीं, लेकिन विपन्नता जरूर कुपोषण दे सकता है। हम चार पहलुओं पर ध्यान देकर कुपोषण की जंग जीत सकते हैं। देखना होगा कि हमारी चूक कहां पर हो रही है उसके बाद हमें अपनी प्राथमिकता तय कर साक्षरता समेत अन्य कई पहलुओं पर जोर देना होगा। लोगों को जागरूक करने के लिए राजभाषा से लोकभाषा में उतरा जाए। - डॉ. एसबी अग्निहोत्री, पूर्व कैबिनेट सचिव
सार्थक प्रयास ही कुपोषण को दूर करेंगे
सालों से पोषण संबंधित मुद्दों पर काम करता रहा हूं। मैंने कुपोषण भारत छोड़ो की बात की थी और कुपोषण एंथम भी तैयार किया। मकसद लोगों को जागरूक करना ही था। अभी लोगों में कुपोषण को लेकर जागरूकता की कमी है। देश की आने वाली पीढ़ी को हमें कुपोषण से निकालना है। इसके लिए सामाजिक जागृति और ठोस प्रयास चाहिए। - प्रसून जोशी, गीतकार
कुपोषण के खिलाफ घर से शुरू होगी जंग
कुछ खामियां हैं जिन्हें दूर किया जा रहा है। यूपी के ललितपुर जिले में कई साल पहले तक बच्चा होने के बाद मां का पहला दूध देवताओं को चढ़ा देते थे। जागरूकता के साथ भ्रांतियां दूर हुईं और नतीजतन ललितपुर आज प्रदेश में बल्कि देश मे स्तनपान के मामले में पहले स्थान पर है। यदि हम सब मिलकर पहल करें तो जंग जीत जाएंगे। - आलोक कुमार, प्रमुख सचिव स्वास्थ्य, उ.प्र.
लोगों के प्रयासों से बदल गई तस्वीर
पहले जब कुपोषण की बात होती थी तो पहले नंदूरबार का नाम लिया जाता था। अब हालात बदल गए हैं। ऐसा लोगों और जिम्मेदार सरकारी महकमों की प्रतिबद्धता से मुमकिन हो पाया है। पहले हमारे इलाके में गर्भवती महिलाओं के संस्थागत प्रसव नहीं हो पाते थे। साझा प्रयासों से स्थिति में सुधार है। - डॉ. हिना गावित, सांसद, नंदूरबार, महाराष्ट्र
शिक्षित मां से होगा कुपोषण दूर
पहले कुपोषण को भूख से जोड़ते थे। अब इसके हर पहलू को देखते हैं। अब परिवर्तन संभव हुआ। एनएफएचएस के आंकड़े बताते हैं कि परिवर्तन हो रहे हैं जो सकारात्मक हैं। इसकी बड़ी वजह यह है कि सभी लोग एकमत होकर सामने आए हैं। अभी भी ये जरुरी है कि महिलाओं के गर्भधारण के समय से से ही उनके खान-पान पर विशेष ध्यान दिया जाये। महिलाएं शिक्षित होंगी तो अपने बच्चों को कुपोषण से दूर रख पाएंगी। सरकार या आईसीडीएस पर निर्भर रहने के साथ साथ हमें अपनी जिम्मेदारी भी दिखानी चाहिए। - गायत्री सिंह, यूनिसेफ पोषक आहार विशेषज्ञ
पोषण के मामलों में मीडिया और राज्य सरकार मददगार
पोषण को लेकर मीडिया और राज्य सरकार मदद कर सकती हैं। अभी एन.एफ.एच.एस. के जो आंकड़ें आयें हैं, वो चौंकाने वाले हैं। खासकर कुपोषण के मामले में, हालांकि टीकाकरण और परिवार नियोजन के मामलों में सुधार हुआ है। - नीरजा चौधरी, वरिष्ठ पत्रकार
बेहतर संचार माध्यम का प्रयोग हो
गर्भवती महिलाओं को उन तक अपनी बात पहुंचाने के लिए बेहतर संचार माध्यम का प्रयोग करना होगा। ऐसा करके हम महिलाओं को जागरूक कर सकेंगे। इसके लिए आंगनवाड़ी और आशा कार्यकर्ताओं को और अधिक प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है। सकारात्मक पहलू यह भी दिख रहा है कि अब संस्थागत प्रसव बढ़ रहे हैं। जागरूकता के लिए मां के साथ पिता को भी जोड़ा जाए।- ऋचा सिंह पांडे, यूनिसेफ पोषक आहार विशेषज्ञ