अमर उजाला फाउंडेशन की ओर से अपराजिता- 100 मिलियन स्माइल्स अभियान व विंग्स ऑफ होप द हेल्पिंग हैंड के सहयोग से मंगलवार, 28 मई, 2019 को विश्व मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन दिवस (मैन्सट्रूअल हाइजीन डे) के मौके पर देहरादून के पटेल नगर स्थित अमर उजाला कार्यालय में संवाद कार्यक्रम का आयोजन किया गयाl माहवारी अभिशाप नहीं है बल्कि वरदान है। इस दौरान महिला को अपवित्र मानने के बजाय उसे अतिरिक्त देखभाल की जरूरत होती है।
माहवारी के प्रति नकारात्मक सोच रखने वाले लोगों को यह समझने की जरूरत है कि माहवारी के कारण ही एक महिला नई जिंदगी को जन्म देती है। संवाद में महिलाओं व बेटियों ने माहवारी पर खुलकर चर्चा की। साथ ही पहली बार माहवारी होने के अपने अनुभवों को भी साझा किया। महिलाओं ने बताया कि पहली बार माहवारी होने पर उन्हें किस तरह की समस्याएं झेलनी पड़ींl महिलाओं ने कहा कि महिला में इतनी शक्ति ही कि वह हर दर्द को झेलती है और समाज अपनी रूढ़िवादी सोच से उसके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाने का काम करता है। महिलाएं बोलीं कि हम नहीं तो नया जीवन भी नहीं।
इस दौरान संध्या शर्मा ने कहा कि माहवारी के प्रति लोगों की सोच वही पुरानी है। आज भी माहवारी के दौरान उन्हें अजीब दृष्टिकोण से देखा जाता है। राघवी चौधरी, ज्योति नेगी, अर्चना सिंघल, चंपा दीवान ने कहा कि इस दौरान महिलाओं को मानसिक व शारीरिक दोनों ही तरह से सहयोग की जरूरत होती है, जो उन्हें नहीं मिल पाता। वह कहती हैं कि उनके समय में सुविधाओं के अभाव के साथ ही रूढ़िवादी सोच से लड़ना भी बहुत मुश्किल था, लेकिन वह अपनी बेटियों का खास ध्यान रखती हैं ताकि वह माहवारी को अभिशाप नहीं बल्कि वरदान समझें। - अवनि को मिले सवालों के जवाब
अवनि शर्मा (13) ने बताया कि जब उन्हें पहली बार माहवारी हुई तो वह बहुत परेशान हुईं। फिर मां ने उसे समझाया। अवनि ने कहा कि माहवारी के दौरान बहुत गुस्सा आता है और सोचती हूं कि वह क्यों लड़की हैं और उसके साथ ही ऐसा क्यों होता है। अवनि के इस सवाल का सभी महिलाओं ने बारी-बारी से जवाब दिया। उसे बताया कि क्योंकि वह एक बेटी और आने वाले समय में एक मां के रूप में सबसे शक्तिशाली है। जबकि फार्मर मिस इंडिया व सामाजिक कार्यकर्ता अनुकृति गुसांई ने अवनि से कहा कि सबसे पहले हर लड़की अपने लड़की होने पर गर्व महसूस करे तो इससे संबंधित कोई समस्या नहीं आएगी।
मां की जिम्मेदारी सबसे बड़ी- अनुकृति
फार्मर मिस इंडिया व सामाजिक कार्यकर्ता अनुकृति गुसांई का कहना है कि अपने शरीर में होने वाले परिवर्तनों को सकारात्मक रूप से स्वीकार करें। बेटी को इस दौरान सबसे अधिक एक मां के सहयोग की जरूरत होती है। बेटी के खानपान से लेकर उसका मानसिक तौर पर अच्छा महसूस कराया जाना चाहिए। इस विषय पर खुलकर बात की जानी चाहिए। अनुकृति ने कहा कि बाजार में शराब, सिगरेट खरीदते हुए लोग हिचकिचाते नहीं हैं और न कोई शर्म महसूस करते हैं। जबकि यह गलत चीजें है, लेकिन हम सेनेटरी पैड खरीदते समय इतना हिचकिचाते है कि मानो कोई गलत चीज खरीद रहे हैं। इस विषय पर बात करने में हमें शर्म छोड़नी होगी।
हमारे समय में और आज के समय में बड़ा फर्क है। जब पहली बार माहवारी हुई तो हमें कोई जानकारी नहीं थी। इसलिए परेशान भी हुए और जानकारी नहीं होने से गलत धारणाएं इसमें जुड़ती गईं, जिन्हें बदलना जटिल हो गया है। आज का दौर कुछ और है। मुझे अपनी बेटी को बताने की जरूरत ही नहीं पड़ी। उसे सब पता था और बड़ी ही आसानी से वह माहवारी के दौरान खुद को रखती है। अगर जागरूकता हो तो हर बेटी की झिझक को दूर किया जा सकता है। - ज्योति चौहान, महिला हेल्पलाइन प्रभारी
जितना हिचकिचाएंगे, उतना मुश्किल होगा
इस मुद्दे पर बात करने में जितना हिचकिचाएंगे, उतना खुद ही शर्मिंदा होेंगे। खासतौर पर पुरुषों के सामने। यह एक आम बात है। इसे सकारात्मक रूप से स्वीकार करें और हर महिला अपनी बेटी को इस दौरान मजबूत बनाए। आज सुविधाएं है, बस सही देखभाल की जरूरत है। - डॉ. अदिति शर्मा, सीनियर वेटनरी ऑफिसर
महिलाओं के बिना यह संसार नहीं चल सकता। इसलिए महिलाओं से जुड़ी हर चीज का समाज को सम्मान करना चाहिए। यह कोई छुआछूत नहीं है। इसी के कारण एक नई जिंदगी दुनिया में आती है। - साधना शर्मा, सामाजिक कार्यकर्ता
मैं स्वयं को बहुत गौरवान्वित महसूस करती हूं, कि मैं एक महिला हूं और हमसे ही एक नई जिंदगी को जन्म मिलता है। माहवारी पर हमें खुद से आगे आकर इस रूढ़िवादी सोच को बदलना होगा कि महिलाएं इस दौरान अपवित्र होती है। - नूपुर मोहंती, सामाजिक कार्यकर्ता
इस दौरान परिवार को सहयोग बहुत जरूरी होता है, जोकि मुझे मिलता है। मेरे दो बेटे है। माहवारी के दौरान मुझ पर जब खास ध्यान दिया जाता है तो बेटों ने मुझसे सवाल किया। मैंने उनसे कुछ छुपाने के बजाय उन्हें सब कुछ अच्छे से समझाया। ताकि वह भी आने वाले समय में इस बात का ध्यान रखें कि लड़की को इन दिनों खास देखभाल की जरूरत होती है। -इला पंत
हमने कई गांव में इस विषय पर जाकर बात की है। यह एक गंभीर चिंतन का विषय है कि गांव में बेटियों व महिलाओं में माहवारी के प्रति जागरूकता नहीं है। आज भी महिलाएं व बेटियां माहवारी के दौरान सेनेटरी पैड का इस्तेमाल नहीं करती हैं। हमारा प्रयास है कि हम ज्यादा से ज्यादा सेनेटरी पैड गांव तक पहुंचा सकें और उनमें यह नई सोच जगाएं कि माहवारी गलत नहीं है। हमने देखा है कि आज भी लड़कियों को माहवारी के दिनों में अलग रहने के लिए कहा जाता है, जिसे बदलने की जरूरत है। - विशाखा, विंग्स ऑफ होप
महिलाओं को पहले खुद को बदलने की जरूरत है, जिस समय को उन्होंने देखा है वह अपनी बेटियों को उससे दूर रखें। उन्हें अच्छा महसूस कराए। ताकि वह माहवारी को सकारात्मक रूप से अपनाएं। नियम अपनी सुविधाओं के अनुसार बनाए गए थे, क्योंकि उस दौरान साफ-सफाई आदि के लिए अच्छी सुविधाएं नहीं थीं, लेकिन आज उन रूढ़िवादी नियमों की जरूरत नहीं है। इसलिए बदलाव हमें स्वयं से करना होगा। - दीपिका, चाइल्ड हेल्पलाइन