बेटी को बोझ मानने की मानसिकता के चलते न तो बेटी के शारीरिक स्वास्थ्य की चिंता की जाती है और न ही मानसिक स्वास्थ्य की। इसी मानसिकता का शिकार हो जाती 15 की गुंजन भी, जब वह हाई स्कूल में पढ़ रही थी। श्रावस्ती के कोंडरी दीगर गांव की गुंजन के पिता उसके बचपन में ही गुजर गये थे और पांच भाई-बहनों को पालने की जिम्मेदारी तब से मां के ही कंधे पर रही है। आर्थिक दबाव के चलते मां भी एकबारगी उसका बाल विवाह करने को उतावली हो उठी थीं। लेकिन गुंजन की बार-बार की जिद के आगे वे अंततः झुक गयीं।
गुंजन ने मां के सामने बाल विवाह के सामाजिक पहलुओं को तो रखा ही, उसके साथ ही इससे जुड़े कानूनी और शारीरिक-मानसिक मुद्दे भी रखे। लंबी बातचीत के बाद मां ने गुंजन की बात को समझा और उसे आगे पढ़ने देने के लिए राजी हो गयीं। गुंजन के बार-बार के इसरार ने मां की दिल इस तरह जीत लिया कि वे कह उठीं कि गुंजन जब तक चाहे, पढ़े। आत्मविश्वास से भरी गुंजन अब अपने गांव-समाज के सभी लोगों से अपील करती है कि किसी भी कीमत पर बाल विवाह न करें।
स्मार्ट बेटियां अभियान से जुड़ी इंटरनेट साथी निशा देवी ने गुंजन से बात करके यह वीडियो कथा बनाकर अमर उजाला को भेजी है।
अमर उजाला फाउंडेशन, यूनिसेफ, फ्रेंड, फिया फाउंडेशन और जे.एम.सी. के साझा अभियान स्मार्ट बेटियां के तहत श्रावस्ती और बलरामपुर जिले की 150 किशोरियों-लड़कियों को अपने मोबाइल फोन से बाल विवाह के खिलाफ काम करने वालों की ऐसी ही सच्ची और प्रेरक कहानियां बनाने का संक्षिप्त प्रशिक्षण दिया गया है। इन स्मार्ट बेटियों की भेजी कहानियों को ही हम यहां आपके सामने पेश कर रहे हैं।