छह बच्चियों के पिता की टीस थी कि खानदान चलाने को बेटा नहीं है। वे बीमार भी रहते थे। डर था कि उसे कुछ हो गया तो कौन बेटियों के हाथ पीले करेगा। लिहाजा जैसे-तैसे करके, एक के बाद एक बेटियों का निकाह कच्ची उम्र में ही पढ़वा रहे थे। बाप की गलतफहमियों को अंजुम बानो ने समझा और अपनी सबसे छोटी बहन को छोटी उमर में गृहस्थी के बोझ से बचा लिया।
श्रावस्ती जिले के जमुनहा ब्लॉक के त्रिलोकपुर गांव में रहने वाली अंजुम बानो अपनी आपबीती सुनाती हैं। उन्होंने बताया कि अब्बा को डर था कि बीमारियां उन्हें वक्त से पहले दुनिया से छीन लेंगी और आखिरी बेटी कुंवारी रह जाएगी। लिहाजा, वे बिटिया की स्कूली तालीम पूरी होने का भी इंतजार नहीं करना चाहते थे।
अंजुम को जब पता चला तो उसने मायके जाकर अब्बा को समझाने-बुझाने की ठानी। घर पहुंच कर अब्बा का हाथ अपने हाथ में लिया। उन्हें समझाया कि बेटे का हक हम पूरा करेंगी। अगर उन्हें कुछ हो भी गया तो बिटिया का ब्याह उसकी बड़ी बहनें मिलकर कराएंगी। अब्बा को तस्कीन हुई। जान में जान आई। उन्होंने बिटिया की शादी टाल दी।
अंजुम गर्व से बताती हैं। उनकी वही नन्ही बहन आज बीए सेकंड ईयर में पढ़ रही है। सेहतमंद है और खुश है। अंजुम बानो दरअसल स्मार्ट बेटियां अभियान से भी इंटरनेट साथी के रूप में जुड़ी हुईं हैँ। उन्होंने ही अपनी एक वीडियो कथा बनाकर अमर उजाला को भेजी है।
अमर उजाला फाउंडेशन, यूनिसेफ, फ्रेंड, फिया फाउंडेशन और जे.एम.सी. के साझा अभियान `स्मार्ट बेटियां` के तहत श्रावस्ती और बलरामपुर जिले की 150 किशोरियों-लड़कियों को अपने मोबाइल फोन से बाल विवाह के खिलाफ काम करने वालों की ऐसी ही सच्ची और प्रेरक कहानियां बनाने का संक्षिप्त प्रशिक्षण दिया गया है। इन स्मार्ट बेटियों की भेजी कहानियों को ही हम यहां आपके सामने पेश कर रहे हैं।