बेटे-बेटियां शिक्षित होंगे तो अपने साथ-साथ समाज के भी काम आयेंगे। और लड़कियां तो दो घरों को रौशन करती हैं, इसलिए उनका शिक्षित होना तो बहुत ही जरूरी है। तमाम मुश्किलों के बावजूद इन विचारों को अपने जीवन में उतारने वाले जगदीश प्रसाद ने तीन बेटियों को बीए तक की शिक्षा दिलवाई, तीनों ने आंगनबाड़ी में काम भी किया। चौथी बेटी अभी इंटर में पढ़ रही है और उसे भी अपने पैरों पर खड़ा होने लायक शिक्षित करने का इरादा है उनका। दो बेटों की शिक्षा के लिए भी उतने ही सजग हैं जगदीश क्योंकि बेटे-बेटियों में कोई भेद नहीं करते वह।
संघर्ष और संकल्प की यह कहानी है परिवार बलरामपुर के अहिरौली गांव जगदीश प्रसाद की। सागौन के पत्तों पर खाना और छोटी सी झोंपड़ी में रहने वाले जगदीश प्रसाद के बच्चों ने भी अच्छी शिक्षा पाने के लिए मिली पिता की सरपरस्ती में अच्छे परिणाम देने वाला संघर्ष किया और आगे बढ़े।
जगदीश कहते हैं कि बेटे तो अपने पास रहते हैं लेकिन बेटियां तो शादी होकर दूसरे घर जाती हैं। इसलिए इन्हें तो इतना गुणी और समर्थ होना चाहिए कि जहां रहें, सबकी दुलारी-प्यारी बनी रहें।
स्मार्ट बेटियां अभियान से जुड़ी इंटरनेट साथी रंजना देवी ने यह वीडियो कथा बनाकर अमर उजाला को भेजी है।
अमर उजाला फाउंडेशन, यूनिसेफ, फ्रेंड, फिया फाउंडेशन और जे.एम.सी. के साझा अभियान स्मार्ट बेटियां के तहत श्रावस्ती और बलरामपुर जिले की 150 किशोरियों-लड़कियों को अपने मोबाइल फोन से बाल विवाह के खिलाफ काम करने वालों की ऐसी ही सच्ची और प्रेरक कहानियां बनाने का संक्षिप्त प्रशिक्षण दिया गया है। इन स्मार्ट बेटियों की भेजी कहानियों को ही हम यहां आपके सामने पेश कर रहे हैं।