भुच्च देहात में रहने वाला एक साधारण किसान ही जानता है कि बेटी को उच्च शिक्षा हासिल करते देख कितनी शांति मिलती है। श्रावस्ती के किसान रामनरेश यादव कहने को साधारण हैं लेकिन उनकी सोच खासी असाधारण है। उन्होंने बेटे-बेटी का भेद किए बिना अपनी संतति को ऊंची तालीम देने का संकल्प लिया हुआ है। बेटा बीएससी कर रहा है। बड़ी बेटी एम ए कर रही है और छोटी बेटी ग्यारहवीं क्लास में पढ़ रही है। जिस गांव में ज्यादातर बच्चियों की शादी पंद्रह-सोलह साल की कच्ची उम्र में ही कर दी जाती हो, वहां रामनरेश यादव एक मिसाल बनकर सामने आए हैं।
श्रावस्ती जिले के इकौना ब्लॉक के बनकटा गांव में रहने वाले रामनरेश की सोच बिल्कुल साफ है। वे कहते हैं कि बाल विवाह का मतलब है बेटी के लिए बीमारियों को न्यौता और अधूरी तालीम। दोनों ही चीजें मुकम्मल इंसान बनने के रास्ते की अड़चनें हैं। इसलिए उन्होंने सोचा कि बेटियों को कच्ची उम्र में नहीं ससुराल नहीं भेजना, चाहे जो हो जाए। रामनरेश की सोच रंग ला रही है। उनकी बच्चियां जवान होने के साथ साथ बाकायदा शिक्षित भी हो रही हैं। वे अपना भविष्य बनाने के रास्ते पर हैं।
अमर उजाला और यूनीसेफ के ` स्मार्ट बेटियां` अभियान के तहत इंटरनेट साथी राजकुमारी यादव ने यह वीडियो कथा बनाकर अमर उजाला को भेजी है।
अमर उजाला फाउंडेशन, यूनिसेफ, फ्रेंड, फिया फाउंडेशन और जे.एम.सी. के साझा अभियान `स्मार्ट बेटियां` के तहत श्रावस्ती और बलरामपुर जिले की 150 किशोरियों-लड़कियों को अपने मोबाइल फोन से बाल विवाह के खिलाफ काम करने वालों की ऐसी ही सच्ची और प्रेरक कहानियां बनाने का संक्षिप्त प्रशिक्षण दिया गया है। इन स्मार्ट बेटियों की भेजी कहानियों को ही हम यहां आपके सामने पेश कर रहे हैं।