बीएससी द्वितीय वर्ष में पढ़ रही विनीता यादव के पिता ने इंटरमीडिएट की पढ़ाई के दौरान ही विनीता का रिश्ता करीब-करीब तय कर दिया था। लड़का पढ़ा-लिखा भले ही कम था लेकिन अमीर परिवार से था। यह गुण उनके लिए काफी था। विनीता को जब पता चला तो उसने सीधे मां से कहा कि वह अपने वजूद की तलाश में और पढ़ना चाहती है। कुछ बनकर ही शादी की बात सोचेगी। अंततः पिता भी मान गये और आज विनीता बीएससी तृतीय वर्ष में पढ़ रहे भाई की तरह ही बीएससी कर रही है।
किसान पिता और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता मां की बेटी विनीता अपने रास्ते के बारे में स्पष्ट है। इतनी ही साफगोई से उसने अपनी पढ़ाई जारी रखने की बात मां के जरिए पिता तक पहुंचवाई थी। उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती जिले के जमनुहा ब्लॉक के त्रिलोकपुर गांव के निवासी विनीता के पिता को तो लगा था कि लड़का पढ़ाई में थोड़ा कमजोर भी हुआ तो क्या, पैसे तो मजबूत है, बेटी आराम से रहेगी। लेकिन विनीता को तो खुद के पैरों पर खड़े होने की जिद थी और इसी जिद को उसने मां के जरिए पिता तक पहुंचाया। बेटी के स्पष्ट विचारों से पिता को भी अहसास हुआ कि उन्हें शादी कि जिद कच्ची उम्र में नहीं करनी चाहिए।
आज दोनों भाई-बहन विज्ञान के ग्रेजुएट होने की राह पर हैं, खुश हैं और अपने भविष्य की इबारत अपने हाथों लिखने के हुनर को तराश रहे हैं।
स्मार्ट बेटियां अभियान से जुड़ी इंटरनेट साथी अंजुम बानो ने यह वीडियो कथा बनाकर अमर उजाला को भेजी है।
अमर उजाला फाउंडेशन, यूनिसेफ, फ्रेंड, फिया फाउंडेशन और जे.एम.सी. के साझा अभियान स्मार्ट बेटियां के तहत श्रावस्ती और बलरामपुर जिले की 150 किशोरियों-लड़कियों को अपने मोबाइल फोन से बाल विवाह के खिलाफ काम करने वालों की ऐसी ही सच्ची और प्रेरक कहानियां बनाने का संक्षिप्त प्रशिक्षण दिया गया है। इन स्मार्ट बेटियों की भेजी कहानियों को ही हम यहां आपके सामने पेश कर रहे हैं।