तुलसीपुर गांव की ममता मिश्रा भुक्तभोगी हैं। खुद उनकी शादी सोलह बरस की कच्ची उम्र में हो गई थी। उसका असर उन्होंने अपनी सेहत, अपने आत्मसम्मान और अपने वज़ूद पर सीधे पड़ते देखा। ममता देर से जागीं। लेकिन जब जागीं तो ऐसी जागीं कि पूरे गांव को जगाने का संकल्प ले लिया।
यूपी के पिछड़े बलरामपुर जिले के इस गांव में ममता मिश्रा एक आशा बहू की हैसियत से काम करती हैं। कुछ समय पहले उन्होंने आशा बहू की ट्रेनिंग ली थी। अब वे गर्भवती महिलाओं को अपनी देखभाल और खुराक के बारे में नसीहत देती हैं। लेकिन अपनी ड़्यूटी निभाते वक्त ममता सबको यह याद दिलाना नहीं भूलती कि परिवार में किसी बेटी को बाल विवाह की चक्की में नहीं झोंकना।
ममता बताती हैं कि उनके छोटे-छोटे प्रयासों का अब असर हो रहा है। गांव वाले सचमुच जाग रहे हैं। धीरे-धीरे वे बेटियों की हायर एजुकेशन को कबूल कर रहे हैं। ममता का मकसद भी यही है - बेटियों को ग्रेजुएट बनाने की मुहिम चलाना। ग्रेजुएशन यानी बीए तक पढ़ाई का मतलब होगा कि कम से कम अठारह साल तक बच्ची का विवाह के झंझट से दूर रहना।
अमर उजाला और यूनीसेफ के ` स्मार्ट बेटियां` अभियान के तहत इंटरनेट साथी प्रियंका उपाध्याय ने यह वीडियो कथा बनाकर अमर उजाला को भेजी है।
अमर उजाला फाउंडेशन, यूनिसेफ, फ्रेंड, फिया फाउंडेशन और जे.एम.सी. के साझा अभियान `स्मार्ट बेटियां` के तहत श्रावस्ती और बलरामपुर जिले की 150 किशोरियों-लड़कियों को अपने मोबाइल फोन से बाल विवाह के खिलाफ काम करने वालों की ऐसी ही सच्ची और प्रेरक कहानियां बनाने का संक्षिप्त प्रशिक्षण दिया गया है। इन स्मार्ट बेटियों की भेजी कहानियों को ही हम यहां आपके सामने पेश कर रहे हैं।